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Friday, July 8, 2022

गुरुदत्त की बर्थ एनिवर्सरी: दुनिया के बेहतरीन डायरेक्टर में से एक पर जिंदगी भर दुखी रहे, आखिरी वक्त बेटी से... - Dainik Bhaskar

6 घंटे पहले

फिल्में बनाईं तो भारतीय सिनेमा की पहचान बन गईं। गुरुदत्त भारतीय सिनेमा का आधार माने गए लेकिन पर्सनल लाइफ में कभी खुश नहीं रहे। गीता से शादी की, वहीदा से प्यार हुआ तो शादीशुदा जिंदगी दुखदाई हो गई। प्यार में धोखा मिला। बच्चों से मिलने के लिए तड़पते रहे और फिर 39 की उम्र में कर लिया सुसाइड।

आज गुरु दत्त की 97वीं बर्थ एनिवर्सरी है। गुरु दत्त ने महज 8 फिल्में ही डायरेक्ट की हैं। उनकी सभी फिल्में सबसे बेहतरीन फिल्मों में से हैं। उनकी फिल्म प्यासा को दुनिया की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक माना गया था। ये फिल्म टाइम मैग्जीन 100 ग्रेटेस्ट मूवीज लिस्ट में शामिल की गई। इसके अलावा कागज के फूल, चौदहवीं का चांद और साहेब बीवी और गुलाम कल्ट सिनेमा मानी जाती। गुरु दत्त की प्रोफेशनल लाइफ जितनी अच्छी रही, उनकी पर्सनल लाइफ उतनी ही ट्रैजिक रही। गुरु दत्त ने नाम पैसा सब कमाया पर फिर भी अपनी जिंदगी से वो तंग थे। हंसता-खेलता परिवार होने के बावजूद गुरु दत्त का आखिरी अकेले कटा। शायद यही अकेलापन उन्हें मौत तक खींच ले गया।

2 साल सीखा डांस

गुरु दत्त का जन्म 9 जुलाई 1925 को कर्नाटक में हुआ था। उनके पिता शिवशंकर राव पादुकोण एक बैंकर और प्रिंसिपल थे, वहीं उनकी मां बसंती शिक्षक और राइटर थीं। गुरु दत्त जब पैदा हुए तब उनका नाम बसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण रखा गया लेकिन बाद में उनका नाम बदलकर गुरुदत्त पादुकोण रख दिया गया। उनके चार भाई-बहन थे। गुरु को शुरू से ही डांस में खासी रुचि थी इसलिए 1942 में उन्होंने उदय शंकर डांस स्कूल में एडमिशन ले लिया। गुरु दत्त 2 साल तक इस डांस एकेडमी का हिस्सा रहे।

टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी मिली तो पूरे परिवार को दिए गिफ्ट

डांस स्कूल छोड़ने के बाद 1944 में गुरु दत्त को लेवर ब्रदर्स फैक्टरी में टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी मिल गई। जब उन्हें पहली तनख्वाह मिली तो उन्होंने अपने टीचर के लिए भगवत गीता, मां के लिए साड़ी, पिता के लिए कोट और अपनी बहन ललिता के लिए एक फ्रॉक खरीदी। टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी गुरुदत्त को ज्यादा दिन नहीं भायी और उन्होने उसे छोड़ दिया। गुरुदत्त ने कुछ समय बाद प्रभात फिल्म कंपनी के साथ काम करना शुरु कर दिया। यहां उनके चाचा ने उन्हें 3 साल के कॉन्ट्रेक्ट पर नौकरी दिलाई थी।

शर्ट बदलने पर देवआनंद बने खास दोस्त

एक फिल्म के सिलसिले में देव आनंद को प्रभात स्टूडियो जाना था। उस इलाके में एक ही लॉन्ड्री थी जहां देव आनंद अपने कपड़े धुलवाया करते थे। उस दिन देव लॉन्ड्री पहुंचे तो उनके कपड़े गायब थे। उनके कपड़े कोई और चुपके से उठा ले गया था।

देव उस दिन मन मारकर रह गए और दूसर कपड़े पहनकर स्टूडियो पहुंचे। सेट पर कई लोग थे देव आनंद भी वहीं मौजूद थे। तभी देव आनंद की नजर एक लड़के पर पड़ी। दरअसल ये लड़का और कोई नहीं गुरुदत्त ही थे। उन्होंने वही कपड़े पहने थे जो लॉन्ड्री से गायब हुए थे। देव आनंद ने वो कपड़े पहचान लिए थे।

देव आनंद ने गुरुदत्त से हाय बोला। तब गुरुदत्त ने अनमने मन से हैलो बोला। फिर देव आनंद ने कहा- तुम्हारे कपड़े बड़े जबरदस्त लग रहे हैं, कहां से लिए? गुरुदत्त ने उनकी तरफ देखकर जवाब दिया - मेरे नहीं है, लेकिन किसी को बताना मत, आज लॉन्ड्री वाले के यहां गया तो उसने मेरे कपड़े धोए नहीं थे, मुझे वहां ये कपड़े बढ़िया लगे, तो उठा लाया। देव आनंद मुस्कुरा दिए। गुरुदत्त की साफगोई उन्हें पसंद आई। उन्होंने कहा- मैं देव आनंद हूं, चेतन आनंद का छोटा भाई। ये कपड़े मेरे ही हैं। गुरुदत्त तब सकपका गए। फिर देव आनंद ने कहा- तुम इस तरह कपड़े उठा लाए तो मुझे गुस्सा आ रहा था। लेकिन तुमने जिस सच्चाई से कहा कि ये कपड़े तुम्हारे नहीं हैं ये मुझे बहुत अच्छा लगा। दोनों वहीं पर दोस्त बन गए।

बस यहीं से दोनों एक-दूसरे के अच्छे दोस्त बन गए। दोनों ने साथ में पुणे घूमा और जब देवआनंद की पहली फिल्म "बाजी" आई तो उसे गुरु दत्त ने ही डायरेक्ट किया। "बाजी" फिल्म हिट रही और इससे हुई कमाई से गुरुदत्त ने अपनी फैमिली के लिए पहला सीलींग फैन खरीदा। इसी फिल्म को बनाने के दौरान उनकी कई लोगों से मुलाकात हुई जो ताउम्र उनसे जुड़े रहे। उनमें से एक जॉनी वाकर भी थे।

जब गुरुदत्त को गीता रॉय से हुआ प्यार

फिल्म बाजी के सेट पर ही गुरुदत्त की मुलाकात सिंगर गीता रॉय से हुई। उस समय गीता रॉय का नाम गुरुदत्त से ज्यादा मशहूर था। गीता के पास एक लंबी गाड़ी हुआ करती थी और वो उसी गाड़ी से गुरुदत्त से मिलने उनके फ्लैट पर जाया करती थीं। गीता काफी सरल स्वभाव की थीं। वो गुरुदत्त के घर जातीं तो रसोई के काम में भी हाथ बंटाती थीं। दोनों में देखते ही देखते प्यार हो गया और एक-दूसरे से लव लेटर भी शेयर करने लगे। 1953 में ये जोड़ा शादी के बंधन में बंध गया।

शादीशुदा गुरुदत्त वहीदा के प्यार में पड़े

गुरुदत्त फिल्म सीआईडी के लिए नए चेहरे की तलाश में थे। उस समय वहीदा साउथ फिल्म इंडस्ट्री में काम कर रही थीं। एक समारोह में दोनों की मुलाकात हुई। गुरुदत्त को वहीदा वहीं पसंद आ गईं। उन्होंने स्क्रीन टेस्ट लेकर वहीदा को फिल्म सीआईडी के लिए सिलेक्ट कर लिया। शूटिंग के दौरान ही दोनों में प्यार हो गया। दोनों एक-दूसरे के बहुत करीब आ गए थे। इसके बाद फिल्म प्यासा बनाने की बात आई तो गुरुदत्त इस फिल्म में दिलीप कुमार को लेना चाहते थे पर वहीदा के अपोजिट उन्होंने खुद फिल्म करना सही समझा। कहा जाता है वहीदा के सीन खासतौर पर गुरुदत्त खुद लिखा करते थे।

घर बचाने के लिए वहीदा को छोड़ा

वहीदा से नजदीकी के चलते गुरु दत्त पत्नी गीता से दूर होते चले गए। उनका घर टूट चुका था। ऐसे में अपना घर बचाने के लिए गुरु दत्त ने 1963 में वहीदा से दूरी बना ली। इस दौरान वहीदा को गुरुदत्त के मेकअप रूम में जाने से भी रोका जाने लगा था। उन्होंने पूरी तरह से वहीदा से मिलना बंद कर दिया था पर कहा जाता है कि वो मरते दम तक दिल से वहीदा को नहीं निकाल पाए थे।

मरने के लिए अलग-अलग तरीके खोजा करते थे गुरुदत्त

गुरुदत्त की लाइफ में एक समय ऐसा आया जब वो डिप्रेशन का शिकार हो गए। वो अपने खास दोस्त अबरार अल्वी से मरने के अलग-अलग तरीकों पर बात करते थे। ऐसे में अबरार को लगता था कि गुरुदत्त बस हंसी मजाक में ये बात कर रहे हैं लेकिन गुरुदत्त के मन में क्या चल रहा था ये कोई नहीं जानता था। गुरुदत्त अपनी पत्नी से आए दिन होते झगड़ों से परेशान थे। कहने को तो गीता अपने बच्चों के साथ गुरुदत्त से अलग रह रहीं थीं पर फोन पर आए दिन दोनों की तीखी बहस होती थी।

बच्चों से मिलने के लिए आखिरी समय तक तड़पे गुरुदत्त

9 अक्टूबर को गुरुदत्त से अबरार अल्वी मिलने गए तो उस वक्त गुरुदत्त शराब पी रहे थे। इस बीच उनकी गीता दत्त से फोन पर लड़ाई हो चुकी थी। वो अपनी ढाई साल की बेटी से मिलना चाह रहे थे और गीता उनके पास अपनी बेटी को भेजने के लिए तैयार नहीं थीं। ऐसे में गुरुदत्त ने नशे की हालत में गीता को अल्टीमेटम दिया कि "बेटी को भेजो वरना तुम मुझे मरा हुआ पाओगी।" रात एक बजे अबरार और गुरुदत्त ने खाना खाया और अबरार अपने घर चले गए। गुरुदत्त भी शराब की बोतल लिए अपने कमरे में चले गए। जब सुबह गुरुदत्त का चैकअप करने डॉक्टरों की टीम पहुंची तो उन्हें लगा गुरुदत्त सो रहे हैं और वो टीम लौट गई। गीता गुरुदत्त को लगातार फोन कर ही रही थीं।

फिर काफी देर तक गुरुदत्त नहीं उठे तो गीता को शक हुआ और उन्होंने नौकरों से गेट तोड़ने के लिए बोल दिया। जब गेट तोड़कर देखा गया तो गुरुदत्त पलंग पर लेटे हुए थे। ऐसे में नौकरों ने अबरार अल्वी को बुलाया। अबरार जब घर पहुंचे तो गुरुदत्त कुर्ता-पायजामा पहने पंलग पर दिखे। पलंग के बगल की मेज पर एक गिलास रखा हुआ था जिसमें थोड़ा गुलाबी पदार्थ बचा हुआ था। अबरार ने देखते ही कहा गुरुदत्त ने खुद को खत्म कर लिया है। लोगों ने पूछा कि आपको कैसे पता? अबरार को ये इसलिए पता था क्योंकि वो अक्सर गुरुदत्त से मरने के तरीकों पर चर्चा करते थे। गुरु दत्त ने अबरार से कहा था "नींद की गोलियों को उस तरह लेना चाहिए जैसे मां अपने बच्चे को गोलियां खिलाती है.... पीस कर और फिर उसे पानी में घोल कर पी जाना चाहिए।" अबरार को उस टेबल पर रखे गिलास ने गुरु की वही बात याद दिला दी थी।

8 में से 7 फिल्में दुनिया की बेहतरीन फिल्में बनी तो एक साबित हुई डिजास्टर

गुरु दत्त ने कागज के फूल, प्यासा, चौधवा का चांद, साहिब बीवी और गुलाम, मिस्टर और मिसेस 55 जेसी बेहतरीन फिल्में बनाई हैं। उनकी फिल्मों को कल्ट सिनेमा के लिए जाना जाता है। उनकी फिल्म प्यासा को दुनिया की सबसे बेहतरीन फिल्मों में से एक माना गया है। वहीं 2010 में गुरु दत्त को टॉप 25 एक्टर्स ऑफ आल टाइम माना गया है। उनकी फिल्म प्यासा फिल्म डायरेक्शन के कोर्स में शामिल की गई है। फिल्म साहिब बीवी और गुलाम के लिए गुरुदत्त को नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। प्रोड्यूसर के तौर पर गुरुदत्त की आखिरी फिल्म बहारें फिर भी आएंगी और डायरेक्टर के तौर पर कागज के फूल थी। फिल्म कागज के फूल उस समय डिजास्टर साबित हुई और इससे गुरुदत्त को 17 करोड़ रुपए से ज्यादा का नुकसान हुआ। गुरुदत्त को इस फिल्म के बुरी तरह फ्लॉप होने से बड़ा झटका लगा था। फिल्म फ्लॉप होने के बाद वो नशे के आदी हो गए थे और बेहद शराब पीने लगे थे। हालांकि उनकी मौत के बाद इस फिल्म को क्लासिक फिल्म माना गया। आज के समय में इस फिल्म को सिनेमेटिक टेक्स्ट बुक की तरह देखा जाता है। कई निर्देशक इस फिल्म को वक्त से आगे की फिल्म बताते हैं।

मौत के दौरान कई फिल्में थीं अधूरी

के. आसिफ द्वारा बनाई जा रही फिल्म लव एंड गॉड में गुरुदत्त को लीड एक्टर के तौर पर साइन किया गया था पर अफसोस की बात है कि इस फिल्म के बनने से पहले ही गुरुदत्त और के. आसिफ दोनों इस दुनिया को अलविदा कर चुके थे। इसके अलावा साधना के अपोजिट फिल्म पिकनिक भी उनके जाने के बाद अधूरी रह गई। फिल्म बहारें फिर आएंगी को उनकी मौत के बाद धर्मेंद्र के साथ बनाया गया। ये फिल्म उनकी टीम की आखिरी फिल्म थी।

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