2009 में विशाल भारद्वाज की फिल्म 'कमीने' आई थी. अब उनके बेटे आसमान भारद्वाज 'कुत्ते' से अपना डायरेक्टोरियल डेब्यू करने जा रहे हैं. अब तक हमने जैसी फिल्में देखी हैं, उसमें हीरो की परिभाषा यही रही है कि वो सच्चाई से लड़ता है, लोगों को उनका हक दिलाता है और दिल जीतता है. इसलिए तो वो हीरो होता है. इस मॉर्डन ऐज सिनेमा में आपको हीरो अपने आइडियल कॉन्सेप्ट में नहीं मिलेंगे. यहां हीरो लालची है, पाखंडी है, अपने स्वार्थ के लिए किसी की भी बलि चढ़ा सकता है. सही-गलत के कॉन्सेप्ट से कहीं परे यहां एक्टर प्रोटैगनिस्ट या एंटॉगनिस्ट यह समझना थोड़ा मुश्किल है.
कौन सही कौन गलत?
कुत्ते की कहानी को एक्स्प्लेन नहीं किया जा सकता है. यह फिल्म कहानी से ज्यादा परिस्थिति पर आधारित है. कहानी शायद बता देने से फिल्म का थ्रिल खत्म हो जाए. इसलिए इसे ऐसे समझाया जाए कि मुंबई में तीन गिरोह में बंटे लोगों का मकसद करोड़ों रुपये की लूट करना है. एक दूसरे से अनजान यह आवारा गिरोह रुपये के शिकार के लिए जाते हैं. यहां इन गैंग को कुत्ते का प्रतिकात्मक रूप दिया गया है और करोड़ों के रुपये को हड्डी. सभी की अपनी कहानी है. अपने मकसद को पूरा करने के लिए इन्हें गोली, गद्दारी और खून तक करने में कोई गुरेज नहीं है. एक हड्डी को पाने के लिए ये कुत्ते किस हद तक जा सकते हैं, कहानी का सार वही है. कौन यहां सही है और कौन गलत? अंत में किसकी जीत होती है? यह जानने के लिए थिएटर का रुख करें.
न्यू ऐज सिनेमा की है झलक
आसमान भारद्वाज आज की जनरेशन के डायरेक्टर हैं. जाहिर सी बात है यूथ का फर्क और फंक इसमें नजर आएगा ही. न्यू ऐज सिनेमा को सिल्वर स्क्रीन पर प्रेजेंट करने का आसमान का यह पहला प्रयास सराहनीय है. फिल्म देखने के दौरान आप आसमान के डायरेक्शन में उनके पिता (विशाल भारद्वाज) की झलक जरूर पाएंगे. एक सिंपल सी कहानी को आसमान ने बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है. हालांकि फिल्म के फर्स्ट हाफ में किरदारों को बिल्डअप करने पर ज्यादा फोकस किया गया है, जिसकी वजह से कहानी बिखरी सी लगती है. पहले हाफ में जो कमी खलती है, वो है कहानी को लेकर दर्शकों के बीच क्लैरिटी न बन पाना. जिस वजह से इंटरवल तक आते-आते आपको थोड़ी उलझन होने लगती है. वहीं सेकेंड हाफ में फिल्म अपनी रफ्तार पकड़ती है और यहां कहानी की गुत्थी सुलझने लगती है. आगे बढ़ते ही कहानी में रोमांच आता है और आपका इंट्रेस्ट जगने लगता है. स्टोरी को एक ऐसे ट्वीस्ट ऐंड पर खत्म किया गया है, जिसकी उम्मीद तो कोई नहीं कर रहा था. फिल्म की एक खूबसूरती यह है कि यह एक ट्रेडिशनल पैटर्न से हटकर है, अमूमन फिल्म एक सुर से शुरू होकर अपने क्लाइमैक्स तक पहुंचती है लेकिन यहां पहले क्लाइमैक्स का सिचुएशन है और कहानी रिवर्स गियर पर जाकर उस परिस्थिती को बयां करती है. ट्रेलर देखने के दौरान दर्शकों ने जिस तरह के ड्रामा, क्राइम व थ्रिलर की उम्मीद की थी, वो सारे एलिमेंट्स इसमें मौजूद हैं.
डार्क थ्रिल को जस्टिफाई करता है कलर पैलेट
एक अच्छी कहानी को स्ट्रॉन्ग टेक्निकल सपोर्ट मिल जाए, तो बात सोने पर सुहागा वाली हो जाती है. फिल्म का टेक्निकल और म्यूजिक इसका मजबूत पक्ष है. थ्रिलर फिल्मों को अक्सर डार्क और इंटेंस दिखाने के लिए कलर पैलेट को डल रखा जाता है, जिसके लिए अमूमन ब्लू या ग्रे रंग के कलर का इस्तेमाल होता है लेकिन कुत्ते में थ्रील को बिल्डअप करने के लिए लाल रंग का इस्तेमाल किया गया है. अगर फिल्म सिल्वर स्क्रीन पर देखते हैं, तो इसके कलर एसेंस को बखूबी समझ पाएंगे. बैकग्राउंड स्कोर की बात करें, तो डायरेक्टर ने कमीने के हिट सॉन्ग का म्यूजिक इसके बैकग्राउंड के लिए रखा है, जो कहानी के दौरान बखूबी ब्लेंड होता नजर आता है. वहीं विशाल और रेखा भारद्वाज के गानों समेत गुलजार की राइटिंग ने फिल्म को रुमानी टच दिया है. सिनेमैटिकली फिल्म ने मुंबई को भली-भांति स्टैबलिश किया गया है.
अर्जुन की परफॉर्मेंस है दमदार
पोस्टर आते ही फिल्म को लेकर सिनेमा लवर्स के भीतर एक क्यूरियॉसिटी जगी थी क्योंकि इसकी कास्टिंग बड़ी ही इंट्रेस्टिंग थी. दरअसल एक फ्रेम में नसीरुद्दीन शाह, तब्बू, कोंकणा सेन शर्मा, कुमुद मिश्रा, अनुराग कश्यप, अर्जुन कपूर, राधिका मदान जैसे विविधरंगी एक्टर्स को प्रेजेंट किया जा रहा था. फिल्म की कास्टिंग तगड़ी है, अर्जुन कपूर का काम एक्सेप्शनल रहा. अर्जुन की अब तक की बेस्ट परफॉर्मेंस मानी जा सकती है. वहीं कोंकणा सेन और तब्बू की एक्टिंग पर कुछ भी कहना सूरज को दीए दिखाने जैसी बात है. वे जब-जब स्क्रीन पर आती हैं, छा जाती हैं. यहां कुमुद मिश्रा सरप्राइज करते हैं. अर्जुन और उनकी जुगलबंदी अच्छी रही. राधिका मदान की फरफॉर्मेंस को आप नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं. हां, नसीरुद्दीन शाह जैसे दिग्गज एक्टर का इतने कम स्पेस के लिए आना थोड़ा खलता है. अनुराग कश्यप एक सीन के लिए आते हैं और चले जाते हैं. इन दो किरदारों को ज्यादा एक्स्प्लोर नहीं किया गया है.
निराश नहीं करेगी फिल्म
अगर अच्छी एक्टिंग और थ्रिलर के शौकीन हैं, तो यह फिल्म आपको कतई निराश नहीं करेगी. अर्जुन के फैंस के लिए यह फिल्म ट्रीट है. बेहतरीन गानें और दमदार परफॉर्मेंस के लिए इस फिल्म को एक मौका दिया जा सकता है.
Kuttey Film Review: न्यू ऐज सिनेमा को परिभाषित करती है 'कुत्ते', दमदार है अर्जुन की परफॉर्मेंस - Aaj Tak
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