हमारे देश में आज भी कहीं कोई लड़की है जिसपर दहेज देने का दबाव बनाया जा रहा है. कोई लड़की है जिसके दहेज को इकठ्ठा करने में उसके भाई या बाप को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. कोई लड़की है जो रोज रिश्तेवालों के सामने अपनी कीमत लगते देख रही है. और यही आज भी हमारे समाज की सच्चाई है.
ये है फिल्म की कहानी
दहेज प्रथा हमारे समाज का सदियों से हिस्सा रही है. बेटी को ब्याहने के समय परिवार को लड़केवालों को दुनियाभर का सामान देते हम सभी ने कभी ना कभी तो देखा ही है. आज के समय में भले ही उसे दहेज की जगह 'गिफ्ट्स' का नाम दे दिया गया हो, लेकिन है तो वो दहेज ही. इसी दहेज प्रथा से जुड़ी है लाला केदारनाथ (अक्षय कुमार) और उनकी चार बहनों की कहानी.
जगह है दिल्ली का चांदनी चौक. लाला केदारनाथ यहां अपनी गोलगप्पे और चाट की दुकान चलाता है. पूरे चांदनी चौक में लाला का चाट तो फेमस है ही, लेकिन प्रेग्नेंट औरतें उनकी ज्यादा दीवानी हैं. वजह है उनका मानना कि लाला की दुकान के गोलगप्पे खाने से उन्हें बेटा नसीब होगा. बेटे की चाह में ढेरों प्रेग्नेंट औरतें रोज दुकान खुलने से पहले ही लाइन लगाकर खड़ी हो जाती हैं. लाला केदारनाथ कहते हैं कि सारा खेल ही लड़कों का है, आपको एक चाहिए और मुझे चार!
लाला की जिंदगी का एक ही मकसद है अपनी चार बहनों गायत्री (सादिया खतीब), दुर्गा (दीपिका खन्ना), लक्ष्मी (स्मृति श्रीकांत) और सरस्वती (सहेजमीन कौर) की शादी करवाना. दूसरी तरफ लाला का खुद का बचपन का प्यार सपना (भूमि पेडनेकर) भी शादी को लेकर अटका हुआ है. सपना के पिता चाहते हैं कि उसकी जल्द से जल्द शादी हो और केदारनाथ के पीछे पड़े रहते हैं. लेकिन केदारनाथ ने अपनी मां को वचन दिया है कि जब तक वो अपनी बहनों का ब्याह नहीं करवा देता, अपना घर नहीं बसाएगा. इसीलिए वो अपनी हड्डियां बहनों के दहेज के पैसे इकट्ठे करने में गला रहा है.
कैसी है फिल्म?
फिल्म का पहला हाफ ढेर सारे ड्रामे से भरा हुआ है. लाला केदारनाथ हर दम शादी-शादी करता रहता है. शादी उसके लिए जिम्मेदारी से ज्यादा जूनून बन गया है. इतना बड़ा जूनून कि बहन को किसी लड़के से बात करते देख लें तो उसे उसी के साथ बांधने को तैयार भी हो जाता, बाद में पता लगा कि वो कबाड़ीवाले से बतिया रही थी. शादी के नाम पर हमेशा वो चीखते दिखता है. हाय शादी! हाय शादी!
फर्स्ट में बहनों की मस्ती भी आपको देखने को मिलती है. गायत्री को छोड़कर बाकी सभी बहनें एकदम जंगली हैं. उनमें प्यार तो है लेकिन एक दूसरे टांग खींचने में भी वो पीछे नहीं. और गायत्री यूं तो सीधी सादी है लेकिन जरूरत पड़ने पर वो भी सबको नाकों चने चबवा सकती है. सभी का रिश्ता अपने भाई केदारनाथ से भी काफी गहरा है. भले ही केदारनाथ रोज उन्हें 'डबल डेकर', 'अमावस की रात' और 'सनी देओल' कहकर जलील क्यों ना करता हो.
सेकंड हाफ में इमोशंस भर-भर कर डाले गए हैं. यहां लाला को इतना बड़ा झटका लगता है कि पहले दहेज का साथ देने के बाद उसके सुर ही बदल जाते हैं. अब लाला दहेज के खिलाफ हैं. अपनी बहनें उन्हें चांद का टुकड़ा लगने लगी हैं. अपने जमा किए पैसों से अब वो उन्हें पढ़ाने को तैयार हो गए हैं. और ऐलान कर दिया है कि 'इस घर की लड़कियां दहेज देती नहीं लेती हैं.'
डायरेक्शन
दहेज की कहानी दिखाने के चक्कर में डायरेक्टर आनंद एल राय समय में बहुत ही पीछे चले गए थे. उन्होंने अक्षय कुमार के किरदार में जान तो डाली लेकिन बहनों और भूमि पेडनेकर के किरदार में जान डालना भूल गए. लाला की बहनें जैसी हैं खुद से प्यार करती हैं लेकिन फिर भी शादी के नाम पर बकवास सहती रहती हैं. जो भाई कहता है करती हैं, जो करता है अपना लेती हैं. उनका बस कहीं चलता ही नहीं. जैसे उन्हें बस भाई से प्यार करने और उसकी इज्जत करने और किसी दिन ब्याहे जाने के लिए बनाया गया है.
भूमि पेडनेकर का किरदार सपना पहले हाफ में एकदम बर्बाद है. प्यार तो सपना की आंखों में दूर-दूर तक नहीं दिखता, फ्रस्ट्रेशन उसके अंदर खूब भरा हुआ है. लाला के चारों तरफ वो शादी-शादी का रट्टा लगाए घूमती है. उसकी बहनों को चुड़ैल तक करार कर देती है और सपना का बाप अलग ही लेवल पर खेल रहा है.
फिल्म के गाने बहुत कमाल नहीं हैं. इसके कई जोक्स सुनकर आपको लगता है क्या कह रहा है भाई. ड्रामा जब ओवरड्रामा बनता है तो आप इरिटेट होते हो. और फिल्म में बहुत सारी चीजें इरिटेट करने वाली हैं.
परफॉरमेंस
अक्षय कुमार ने अपने किरदार में काफी सही काम किया है. एक जिम्मेदार भाई, सपना के प्यार में दीवाना आशिक जो किस्मत के हाथों मजबूर है. इस किरदार में अक्षय ने सही इमोशंस के साथ काम किया है. उनका कॉमेडी से भरा ओवरएक्टिव रूप आपको देखने के लिए मिलता है और फिर इमोशनल रूप में वह कमाल कर देते हैं. बहनों के किरदार में सादिया खतीब, दीपिका खन्ना, स्मृति श्रीकांत और सहेजमीन कौर का काम भी अच्छा है. भूमि पेडनेकर ने ठीक काम किया है. सपना के पिता के किरदार में नीरज सूद छा गए. साहिल मेहता एक सपोर्टिव दोस्त और साथी के रोल में काफी अच्छे हैं. सीमा पाहवा का कैमियो भी सही था.
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