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Thursday, August 4, 2022

Kishore Kumar: इस मोड़ से जाते हैं... कुछ सुस्त क़दम रस्ते कुछ तेज़ क़दम राहें - Aaj Tak

'दुखी मन मेरे सुन मेरा कहना... जहां नहीं चैना, वहां नहीं रहना' साल 1956 में आई फिल्म फंटूश का यह गाना साहिर लुधियानवी ने लिखा था, और फिल्म में इसे आवाज़ किशोर कुमार ने दी थी. साहिर का यह गाना फिल्म के लिए था, लेकिन स्टूडियो में रिकॉर्ड करते हुए किशोर कुमार इसे अपने लिए लिखा हुआ मानकर गा रहे थे. किशोर का जीवन भी इसी पंक्ति पर चला, उन्हें जहां ज़रा भी दुःख मिला, उस जगह से चले गए. छोड़कर जाने के तमाम किस्से लिए किशोर कुमार की कहानी बेहद अल्हड़ रही. एक मस्तमौला आदमी जिसने फ़िक्र को कभी यह मौक़ा नहीं दिया कि वो किशोर के गले में उतर कर उनके सुर बिगाड़ दे. मध्य प्रदेश के खंडवा में जन्म लेने वाले किशोर को यह शायद यह 'आभास' भी नहीं हुआ होगा, कि खंडवा से दूर कहीं एक दुनिया उनका इंतज़ार कर रही है. स्कूल जाते समय जी चुराता हुआ एक बच्चा यही सोचता रहता था कि ना जाने कब इस सब से छुट्टी मिलेगी. 

पढ़ाई-लिखाई को लेकर आभाष कुमार गांगुली यानी कि किशोर कुमार के बड़े भाई अशोक कुमार ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनका सबसे लाडला और छोटा भाई किशोर पढ़ाई का बड़ा चोर है. किशोर ने कभी इस बात का बहुत भार नहीं उठाया कि उनका पढ़ने में मन नहीं लगता, बल्कि वो उन दिनों बड़ी बड़ी थ्योरी भी ट्यून कर लेते थे. उनकी याद में उनके सब्जेक्ट से जुड़ा जो कुछ भी मौजूद था, सब की कोई ना कोई धुन थी. ऐसे में ये तो साफ़ था कि किशोर सीखे हुए सिंगर नहीं थे, वो सिंगर बने नहीं, बल्कि वो एक सिंगर थे. उन्हें बस वक़्त ने तराशा. 

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अशोक कुमार ने एक इंटरव्यू में एक खुलासा करते हुए बताया था कि किशोर की आवाज़ हमेशा से इतनी बेहतरीन नहीं रही. बल्कि ये एक हादसे की वजह से निखर गई. अशोक कुमार के मुताबिक बचपन में किशोर की आवाज़ काफी ख़राब थी. उनका गला बैठा हुआ था, खांसते रहते थे. लेकिन एक बार उनके जीवन में एक ऐसा हादसा घटा जिसने किशोर की दुनिया जैसे एकदम से उलट दी थी. दादा मुनि की मानें तो एक बार छोटे आभाष यानी कि किशोर अपनी मां के पास किचन में जब भागकर पहुंचे तो वहां रखी दराती पर उनका पैर पड़ गया जिसकी वजह से उनके पैर की एक उंगली बुरी तरह कट गई. जिसके बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया. डॉक्टर ने उनकी मरहम पट्टी तो कर दी, लेकिन किशोर को चोट की वजह से काफी दर्द रहा. दर्द के चलते किशोर काफी रोते रहते थे. किशोर तकरीबन 20 दिन तक रोते रहे और उनके बेहद रोने की वजह से उनके गले में बदलाव आ गया. उनकी आवाज़ में एक अलग ही खनक आ गई. इसे ऐसे समझ लीजिये कि बेहिसाब रोने से उनका रियाज़ हो गया. 

अक्सर ऐसा होता है कि हम जो हैं उसे छोड़कर कुछ और हो जाना चाहते हैं. हम यह जानने में मेहनत ही नहीं करते कि आखिर हमारी मिट्टी कौन सी है. लेकिन जो जान जाते हैं की उनकी सामर्थ्य क्या है, वो कमाल करते हैं. जैसे किशोर ने किया कि उनका नाम इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में दर्ज है. किशोर गा सकते हैं, इस बात को लेकर उनके बड़े भाई दादा मुनि यानी कि अशोक कुमार में कॉन्फिडेंस था. इसीलिए उन्होंने एक दिन किशोर को एक हारमोनियम लाकर दिया और ये कह दिया कि अब तुम खूब गाओ और बजाओ. किशोर तो जैसे ख़ुशी से झूम उठे थे. 

कुंदन लाल सहगल को अपना गुरु मानने वाले किशोर उन्हीं के गाने गुनगुनाया करते थे. केएल सहगल और किशोर से जुड़ा एक किस्सा है कि एक बार हारमोनियम लेकर बैठे किशोर को देख उनके बड़े भाई दादा मुनि ने उनसे कुछ गानों की फरमाइश कर दी. उन्होंने कहा कि ए बाबू मोशाय, कोई गाना वाना सुनाओ ना. एकदम ख़ुशनुमा माहौल में कही गई इस बात को किशोर के जवाब ने और भी मज़ेदार बना दिया. किशोर ने कहा गाना तो मैं सुना दूंगा, लेकिन सहगल के गाने का पांच आना लूंगा. इस पर दादा मुनि ने कहा कि पांच आना, अच्छा तो मेरे गानों को गाने का कितना लेगा. किशोर बोले आपका कोई भी गाना एक आने में सुना दूंगा. 

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इतना सुनकर वहां ठहाके लग गए. दादा मुनि मान गए, लेकिन जब उन्होंने किशोर से सहगल का दूसरा गाना सुनाने को कहा तो किशोर बोले कि अब सहगल के गानों का रेट बढ़ गया है. पैसों को लेकर काफी सेंसटिव रहने वाले किशोर ने कभी मुफ्त में अपनी कला का प्रदर्शन नहीं किया. उनके इस अंदाज़ से जुड़े कई किस्से हैं. वो कोई भी फिल्म तब ही साइन करते थे जब उनको चेक मिल जाता था. किशोर पैसे नहीं छोड़ सकते थे. 

कई बार रिकॉर्डिंग के दौरान जब वो अपने साथ से कोड वर्ड में पूछ लेते थे कि हां भाई चाय पी की नहीं (मतलब पेमेंट हुई कि नहीं) तो इस पर अगर जवाब आए जी दादा, चाय पी ली बहुत गर्म थी तो किशोर स्टूडियो में समां बांध देते थे. लेकिन उन्हें जब जवाब में यह सुनने को मिलता कि नहीं दादा अभी चाय नहीं पी... चाय बस आ रही है. तो किशोर स्टूडियो में बिगड़े सुरों से माहौल बिगाड़ देते थे. हालांकि ऐसा भी नहीं था कि किशोर पैसों के लोभी हों, वो बस अपनी कला को मुफ्त या कम कीमत में करने से कभी राजी नहीं हुए. उन्हें लगता था कि एक कलाकार को उसका मेहनताना मिलना चाहिए, उतना तो ज़रूर कि जितना उसका और उसकी कला का हक है. लेकिन राजेश खन्ना की एक फिल्म 'अलग-अलग' के लिए किशोर ने सिर्फ एक रुपए लेकर भी गाने गाए.

हालांकि वो लता मंगेशकर की फीस से हमेशा एक रुपया कम लिया करते थे. ये उनका मनमौजी स्वभाव ही था कि इंदिरा गांधी की सरकार के दौर में उन्होंने सरकार के लिए किसी भी गाने या जिंगल को गाने से मना कर दिया. जिसका भुगतान उन्हें ऑल इंडिया रेडियो पर बैन होकर चुकाना पड़ा. लेकिन किशोर एक ऐसे शख्स थे जिन्हें अगर फर्क नहीं पड़ा था फिर चाहे जो हो जाए उन्हें फर्क नहीं ही पड़ेगा. वो टस से मस नहीं होने वाले. समाज की परवाह ना करने वाले किशोर कुमार का गाया हुआ गाना आज भी लोगों को हिम्मत देता है- कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना...

एक बेहतरीन कलाकार और एक बेहतरीन शख्सियत किशोर कुमार किसी भी फिल्म के सेट या फिर गानों की रिकॉर्डिंग के दौरान स्टूडियो की जान हुआ करते थे. उनके किस्सों को बताते हुए एक बार आशा भोंसले ने जिक्र किया था कि वो अक्सर एक 'मानस बच्चे' के साथ फिल्म के सेट पर या स्टूडियो में आया करते थे. वो जैसे ही सेट में घुसते तो वो एक इमैजिनरी बच्चे का हाथ पकड़े हुए आते थे. सबके सामने बच्चे से नमस्ते करने को कहते और खुद ही बच्चों की आवाज़ में जवाब देते. कई कई बार तो जब गानों की रिकॉर्डिंग हो रही होती तो वो बच्चे की आवाज़ में बोल उठते कि ये कैसा बकवास गाना है और फिर अपनी आवाज़ में कहते चुप चुप ऐसा नहीं कहते. उनकी इस आदत के साथ हम सभी इतना घुल मिल गए थे कि कई बार उनके उस इमैजिनरी बच्चे के हाल चाल भी पूछ लेते थे. 

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किशोर कुमार के जीवन से जुड़े कई पहलुओं पर गौर करने पर मिलता है कि वो अक्सर अपने सेट से गायब होकर कहीं चले जाते थे, शूटिंग छोड़ जाते थे, किसी के साथ रिश्ते में भी कई बार वो अलग होकर उस जगह से उठकर चले जाते थे. ये यूं अचानक चले जाना उन्हें सबसे ज्यादा भाता था. लता मंगेशकर के साथ एक बार बातचीत में उन्होंने अपने इस नेचर के बारे में बात भी करते हुए कहा था कि वो किसी को दुःख नहीं पहुंचाना चाहते. जब सब कुछ बेहतर चल रहा होता है तो मुझे लगता है कि शायद यही वो सही समय है जब उठकर चले जाना चाहिए. मैं वहां से उठकर चला जाता था, या अभी भी छोड़ सकता हूं. मैं नहीं चाहता कि जब सब बहुत अजीब और दुखी सा हो जाए तब जाया जाए. हमेशा एक अच्छी याद रहनी चाहिए. उनके कई गानों में उनकी इस बात की झलक भी मिली कि जीवन को लेकर वो हमेशा आगे की तरफ़ बढ़े. ये मानकर कि ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मकाम, वो फिर नहीं आते.  

अल्हड़ और मदमस्त रहने वाले किशोर हमेशा एक ऐसी दुनिया सोचते थे जहां बस प्यार ही प्यार रहे. ऐसी एक दुनिया को जीने वाले किशोर कुमार का एक गाना भी उन्हीं की दुनिया बयान करता है. 

आ चल के तुझे मैं लेके चलूं, 
एक ऐसे गगन के तले.

जहाँ ग़म भी ना हो, आंसू भी ना हो, 
बस प्यार ही प्यार पले.

प्यार के मामले में किशोर कुमार एकदम बच्चे से रहे, जिस पर प्यार आया उससे कह दिया. लेकिन एक दौर ऐसा भी आया कि उनके एक इकरार और फिर उसके बाद उठाए गए एक कदम के बाद उन्हें मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा. ये बात तब की है जब उनके जीवन में रूमा देवी आईं. किशोर, रूमा से प्यार कर बैठे और उनसे शादी भी कर ली. इस बात ने उनके जीवन में भूचाल ला दिया था. बड़े भाई अशोक कुमार को जैसे ही इस बात का पता चल तो उन्होंने किशोर को ना सिर्फ घर से निकाल दिया बल्कि उन्हें फिल्म स्टूडियो बॉम्बे टॉकीज़ से भी निकलवा दिया. ये सबसे बुरा दौर था, जब सबसे ज्यादा प्यार करने वाला बड़ा भाई अपने भाई को घर से निकाल दे. 

किशोर दुखी थे, लेकिन उन्हें इन सभी बातों से ऐसी टूटन नहीं हुई कि कुछ अनहोनी घट जाए. रूमा के साथ किशोर ने अपने जीवन को शुरू किया और अब आगे के सफ़र में उनका साथ खेमचंद प्रकाश और सचिन देव बर्मन ने दिया. सचिन देव बर्मन ने किशोर को हद पार प्यार किया. उनकी मदद की. और सचिन देव बर्मन ही वो शख्स थे जिनकी वजह से को उनका पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला. और ये फिल्म थी- आराधना. 

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किशोर ने चार शादियां कीं. और ये चार नंबर किशोर के साथ काफी जुड़ा भी रहा. घर में चार भाई बहनों में चौथे नंबर के आभाष कुमार गांगुली ने एक्टिंग भी की. देव आनंद की पहली फिल्म के लिए जहां वो एक तरफ उनकी आवाज़ भी बने तो एक सीन में उन्होंने माली का किरदार भी निभाया. इस किरदार पर अशोक कुमार ने एक बार बात करते हुए बताया कि जब किशोर को यह मालूम हुआ था कि ये सीन रीक्रिएट किया जाएगा तो वो सेट से भाग गया था. इस सीन में हमने किशोर से एक छोटा रोल करने को कहा, कि तुम बस एक सीन में आओगे और बस ऐसे ही कुछ भी बोल देना, तो किशोर ने इस सीन में थोड़ा बहुत बोलकर बिना आवाज़ के गालियां भी दे दी थीं. यह फिल्म थी- जिद्दी. किशोर एक पैदाइशी कलाकार थे और उतने ही मस्तीखोर भी.    

सेट पर शूटिंग का एक किस्सा है जिसमें उन्हें शूटिंग के दौरान उन्हें कार स्टार्ट कर के फ्रेम से IN और OUT होना था. डायरेक्टर ने जैसे ही ACTION कहा तो किशोर कार लेकर निकले, लेकिन वो फिर सीन ही नहीं शूटिंग सेट से भी आउट हो गए. उन्हें ढूंढा गया कि किशोर कहां चले गए तो किशोर ने सेट पर तीन घंटे बाद ये सूचना पहुंचाई कि आपने CUT तो बोला ही नहीं इसलिए मैं पनवेल निकल आया. एक मदमस्त कलाकार जिसके जैसा ना पहले कभी हुआ और ना शायद अब कभी होकर अपनी कार लेकर संको हंसाते हुए हमारी आंखों के सामने से गुज़र गया. पीछे कुछ बाकी है तो उनके प्लान किये के हिसाब से हंसती खेलती बातें, वो हमेशा यही चाहते भी रहे कि कहीं कुछ बुरा ना रह जाए. किशोर कुमार हमारे दिलों में हमेशा ये खूबसूरत याद की तरह बने रहेंगे. जब भी मन उदास हुआ तो उनके युडली गुनगुना लेंगे.   
 

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