स्टोरी हाइलाइट्स
- 21 जून को मनाया जाता है वर्ल्ड म्यूजिक डे
- फोक म्यूजिक के आर्टिस्ट शेयर कर रहे हैं अपना एक्स्पीरियंस
बीते जमाने से बॉलीवुड के म्यूजिक में गाहे-बगाहे लोकगीत की खनक सुनने को मिलती रही है लेकिन जिस तरह से उम्मीद की जा रही थी कि बॉलीवुड पूरी तरह से लोकसंगीत को अपनाएगा, वो कभी हो नहीं पाया. यही वजह भी रही कि लोकसंगीत के मशहूर कलाकारों ने भी समय के साथ खुद को बॉलीवुड से दरकिनार कर लिया है. हालांकि उनकी मौजूदगी में गाए गए गीतों ने चार्टबीट पर सफलता की उंचाईयों को छुआ है.
आज वर्ल्ड म्यूजिक डे के मौके पर हम कुछ ऐसे किस्से लेकर आ रहे हैं जो काफी दिलचस्प हैं और बहुत खास. क्योंकि ये बात करते हैं लोकसंगीतकार की. फोक म्यूजिक की दुनिया में शारदा सिन्हा बहुत बड़ा नाम है. बिहार के विविधरंगी मैथिल, अवधी, भोजपुरी भाषाओं में शारदा ने अपने गानों में हर तरह के इमोशन को जिया है.बिहार के कल्चर को देश के कोन-कोने तक पहुंचाने में शारदा के गीतों का बहुत बड़ा योगदान रहा है. बॉलीवुड में पहली बार शारदा सिन्हा ने 'मैंने प्यार किया था' का गीत 'कहे तोसे सजना' ने गाया था.
शारदा इस गाने के पीछे की अनसुनी कहानी सुनाते हुए बताती हैं कि पुराने समय से बॉलीवुड में लोकसंगीत के आधार पर गानें बनते रहे हैं. जिन म्यूजिक डायरेक्टर्स ने यह प्रयोग किया है, वो सुपरहिट रहे हैं. फोक म्यूजिक के बिना बॉलीवुड का म्यूजिक नहीं चल पाएगा. उन्हें समय-समय पर इसकी जरूरत तो पड़ती ही है, वो म्यूजिक डायरेक्टर बहुत श्योर हो जाते हैं, जिन्होंने अपने गानों में फोक को जिंदा रखा है.
'कहे तोसे सजना' गाने के अपने पहले दिन की शूटिंग का किस्सा शेयर करते हुए शारदा कहती हैं, मैंने महाकवि विद्यापति के गीतों का एक एल्बम रिकॉर्ड किया था. हमने उस एल्बम का नाम रखा था, श्रद्धांजली, ए ट्रियूब्ट टू मैथिल कोकिल विद्यापति. मुझे याद है तारा सिंह बड़जात्या जी ने मुझे लेटर लिखकर कहा था कि शारदा जी आपका श्रद्धांजली एल्बम का कैसेट घिस चुका है, वो एल्बम अवेलेबल नहीं है, मुझे कैसे मिल पाएगा. अब इतने बड़े आदमी मुझे लेटर लिखकर ये बात कह रहे हैं, तो आप सोचें कि कैसी फीलिंग रही होगी. मैं फिर बॉम्बे लैब किसी रिकॉर्डिंग के सिलसिले में गई थी, वहां से काम खत्म कर तारासिंह जी से मुलाकात करने उनके स्टूडियो पहुंची. उस समय सूरज बड़जात्या बहुत छोटे थे. वहां, उन्होंने राम-लक्ष्मण जी को बुलाकर रखा था. वहां ऑन स्पॉट मेरी रिकॉर्डिंग की गई. उनको मेरा गाना पसंद आया. फिर बाद में उनका मेसेज आया कि उन्हें मेरे गाने की धुन को आधार लेते हुए एक गाना तैयार किया है, जिसकी रेकॉर्डिंग के लिए मुझे मुंबई बुलाया गया था. मेरे उस फोक गाने पर बंबईया रंग चढ़ गया था. मैं सोचती थी कि उस फिल्म में लता जी ने सारे गाने गाए हैं, तो मेरा गाना वो भी फोक कौन सुनेगा. लेकिन आज भी कोई ऐसा मंच नहीं है, जहां 'कहे तोसे सजना' गाने की फरमाइश नहीं आई हो.
मैं चाहती, तो शायद मुंबई में रह जाती लेकिन मैंने अपने लोकसंगीत को चुना और बिहार की जमीन में रहना पसंद किया है. मुझे राजकपूर जी राम तेरी गंगा मैली के लिए गंवाना चाहते थे लेकिन पारिवारिक मजबूरी की वजह से मैं उनके इस फिल्म में गा नहीं सकी, जिसका मलाल मुझे जिंदगीभर रहेगा.
बॉलीवुड के गाने संगीत का एक हिस्सा है न कि पूरा संगीत: मामे खान
बॉलीवुड में गाने की बात पर लोक गायक मामे खान कहते हैं कि सबसे पहले मैं खुद को संगीत का स्टूडेंट मानता हूं. बॉलीवुड के गाने संगीत का एक हिस्सा है न कि पूरा संगीत. सबसे पहला म्यूजिक फोक ही है. इसे ही सारे म्यूजिक का दाता कहा जाता है. बॉलीवुड में फोक म्यूजिक का इस्तेमाल होना कोई हानिकारक बात नहीं है. बॉलीवुड के पास मास मीडिया से जुड़ने का पावर है. वहीं फोक म्यूजिक अपने रीजन तक सीमित होते हैं. मैंने बॉलीवुड में कई गानें गाए हैं लेकिन हमेशा इस बात का ख्याल रखा है कि मैं अपने रूट को न भूलूं.
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