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Thursday, September 23, 2021

Exclusive: मेरी कोई रचना सौ फीसदी मौलिक नहीं...राष्ट्रवादी होने की सज़ा दी जा रही है : मनोज मुंतशिर - Aaj Tak

कवि और गीतकार मनोज मुंतशिर अपनी एक कविता के लिए सोशल मीडिया के निशाने पर हैं. वजह है 2019 में आई उनकी एक किताब ‘मेरी फितरत है मस्ताना’ की एक कविता ‘मुझे कॉल करना’. लोगों का कहना है कि ये कविता किसी और के द्वारा लिखी गई है और मनोज मुंतशिर ने सिर्फ इसका हिंदी अनुवाद करके अपनी किताब में छाप दिया है. 

इस मुद्दे पर मनोज चुप्पी साधे हुए थे. बाद में उन्होंने एक ट्वीट किया - 200 पन्नों की किताब और 400 फिल्मी और गैर फिल्मी गाने मिलाकर सिर्फ 4 लाइनें ढूंढ पाए? इतना आलस? और लाइनें ढूंढो, मेरी भी और बाकी राइटर्स की भी. फिर एक साथ फ़ुरसत से जवाब दूंगा. शुभ रात्रि! 

हालांकि aajtak.in ने जब उनसे इस मुद्दे पर बात की तो उन्होंने हर सवाल का विस्तार के साथ जवाब दिया. पेश है उनसे हुई बातचीत के संपादित अंश

मनोज मुंतशिर पर कविता चुराने का आरोप, ट्रोल होने पर बोले-फुरसत से दूंगा जवाब

सवालः सोशल मीडिया पर आपकी आजकल खूब चर्चा हो रही है.

मनोज मुंतशिरः आभार उन सबका जिन्होंने मेरे नाम और काम का इतना चर्चा किया, कि आपको मेरा इंटरव्यू लेना पड़ा. मैं उस दिन का सपना देखता था जब कोई ‘लिखने वाला’ इस देश में ‘बिकने वाला’ समाचार बन जाए. आज मेरी किताब ‘मेरी फितरत है मस्ताना‘ पर इतनी बात हो रही है, मेरी खुशी का आप अंदाज़ा नहीं लगा सकतीं. देश-विदेश में मैंने अपनी किताब के साथ भ्रमण किया, लेकिन इतना शोर कभी नहीं मचा जितना आज 3 साल बाद मच रहा है. अब मैं भी मान चुका हूं कि ‘ऊपरवाले के घर देर है अंधेर नहीं’. 

सवालः. मतलब जो कुछ हो रहा है उस से आप खुश हैं? 
 
मनोज मुंतशिरः मैंने अपनी आंखों के सामने कितने बड़े-बड़े राइटर्स को नाकामी की जिंदगी जीते और गुमनामी की मौत मरते देखा है. आज हालात बदल गए हैं और इन बदले हुए हालात का मैं खुली बाहों से स्वागत करता हूं. जिस देश में हिरोइनों का एयरपोर्ट लुक हेडलाइन बने, सेलिब्रिटीज का कुत्ते घुमाना सुर्खियां बटोरे, वहां अचानक मीडिया में कविता और कवि की बात होने लगे तो समझ लीजिए सतयुग वापस आ गया. इसी क्रांति का ख्वाब देखते हुए निराला और नागार्जुन चल बसे. मेरा सौभाग्य है कि मैं इस क्रांति का दूत बन पाया.

सवालः. लेकिन चर्चा तो आपकी गलत कारणों से हो रही है? कहा जा रहा है कि आपने एक अंग्रेजी कविता का अनुवाद करके अपने नाम से छपवा दिया.

मनोज मुंतशिरः सिर्फ एक? ये बात तो मेरी हर कविता, हर गीत के बारे में कही जा सकती है. मेरी कोई भी रचना शत-प्रतिशत मौलिक (original) नहीं है क्योंकि भारतवर्ष में सिर्फ दो मौलिक रचनाएं हैं, वाल्मीकि की रामायण और वेद व्यास की महाभारत. इसके अलावा जो कुछ भी लिखा गया है सब घूम-फिर के इन्हीं दो महाग्रंथों से प्रेरित है. 

सवालः. तो आप मानते हैं की ‘मुझे कॉल करना‘ पर रॉबर्ट लेवरी की छाप है?

मनोज मुंतशिरः बिल्कुल है, और सिर्फ रॉबर्ट लेवरी की नहीं, श्री केदारनाथ सिंह, वर्ड्सवर्थ, एमिली डिकिंसन, पाब्लो नेरुदा और सिल्विया प्लैथ की भी छाप है. ये वो लेखक हैं जिनको पढ़ के मैं बड़ा हुआ हूं, मेरी काव्यात्मक चेतना पर इनका गहरा प्रभाव है. मैं कुछ भी लिखूं, मेरे शब्दों से ये सभी और अनगिनत और भी लेखक झांकने लगते हैं. आज तो खैर मेरा मीडिया ट्राइल हो रहा है लेकिन जब किसी ने सवाल नहीं भी पूछा था तो भी मैंने खुद जनता के बीच जा कर सौ बार कहा कि मेरे लिखे हुए सुपर हिट गीतों पर हिंदी उर्दू कविता के दिग्गजों का गहरा प्रभाव है. बिना किसी के सवाल पूछे मैंने सैकड़ों मंचों से बोला कि ‘तेरी गलियां‘ का अंतरा मोमिन के एक शेर से प्रेरित था, ‘तुम मेरे पास होते हो गोया, जब कोई दूसरा नहीं होता‘.  मैं ये शेर न जानता तो कभी न लिख पाता ‘सरगोशी सी है ख्यालों में, तू न हो फिर भी तू होता है. मेरे एक और बहुत कामयाब गीत ‘तेरे संग यारा’ की पंक्तियां, ‘कहीं किसी भी गली से जाऊं मैं, तेरी ख़ुशबू से टकराऊं मैं‘ फिराक गोरखपुरी के एक शेर से आती हैं, ‘मुझे गुमरही का नहीं कोई ख़ौफ़, तेरे दर को हर रास्ता जाए है’.

कोई एक दो रचनाएं थोड़ी हैं कि मैं गिनवा दूं, जो कुछ भी लिखा कहीं न कहीं से प्रेरित है, क्योंकि लिखने का कोई दूसरा तरीक़ा है ही नहीं. आपसे पहले जो लिखा जा चुका है, वही तय करता है कि आप क्या लिखेंगे. हमारे शास्त्रों में इसी को ऋषि-ऋण कहा जाता है. जाने-अनजाने जो हमने अपने बड़ों से या अपनी पहले की पीढ़ियों से सीख लिया वो हमारे कृतित्व पर क़र्ज़ है और ये क़र्ज़ लौटाने से मैं कभी पीछे नहीं हटा. कुछ बरस पहले की बात है, एक अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अवॉर्ड शो में, देश से बाहर मुझे सम्मानित किया जाता है. पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री मेरे सामने बैठी हुई थी, मंच से घोषणा होती है,  ‘अवार्ड फ़ॉर द बेस्ट लिरिक्स गोज़ टु मनोज मुंतशिर फ़ॉर रश्के-क़मर‘. मैं मंच पर आता हूं और धन्यवाद ज्ञापन के साथ जो पहली बात कहता हूं वो ये थी ‘लेट मी करेक्ट यू, अवार्ड फ़ॉर द बेस्ट लिरिक्स गोज़ टु नुसरत फतह अली खान, फ़ना बुलंदशहरी एंड मनोज मुंतशिर’ वीडियो इंटरनेट पर उपलब्ध है देख लीजिएगा. होना तो ये चाहिए था कि मैं पूरी वाहवाही खुद बटोर लूं, लेकिन मैंने अपना ऋषि-ऋण अदा किया. मैं अपने करियर की शुरुआत में दूसरों को श्रेय देने से नहीं डरा, अपनी लाइम-लाइट शेयर करने से नहीं डरा, तो अब क्यों डरूंगा? 

सवालः. मतलब आप कह रहे हैं कि आपकी कविता सिर्फ प्रेरित है?

मनोज मुंतशिरः कविता बहुत बारीकी का काम है. कविता की रचना-प्रक्रिया समझने के लिए भी खुद कवि होना पड़ता है. जो भाव, या अभिव्यक्तियां पब्लिक डोमेन में हों, उनपर कोई भी लेखक अपनी तरह से लिख सकता है. ‘वन्दे-मातरम’ बंकिम चंद्र जी की रचना है, लेकिन इतनी प्रसिद्ध हुई कि पब्लिक डोमेन में आ गयी. जब AR रहमान ‘मां तुझे सलाम’ जैसा बेहतरीन गीत बनाते हैं तो हुक लाइन में ‘वन्दे मातरम‘ का सीधा अनुवाद कर लिया जाता हैं, ‘वन्दे-मातरम‘  यानी, ‘मां तुझे सलाम‘. गीत के लेखक में कहीं बंकिम जी का नाम नहीं दिया जाता और वो ज़रूरी भी नहीं है क्योंकि ‘वन्दे-मातरम‘ पब्लिक डोमेन में है. कबीर की रचना , ‘मेरी चुनरी में परी गयो दाग़ पिया‘  फ़िल्मों में आके, ‘लागा चुनरी में दाग़‘ बन जाता है और गीतकार में ‘साहिर‘ का नाम होता है कबीर का नहीं, क्योंकि कबीर की रचना पब्लिक डोमेन में जा चुकी है. मेरा अपना गीत ‘तेरी मिट्टी’ अनेकों भाषाओं में अनूदित हो चुका है लेकिन शायद ही कहीं मेरा नाम लिखा हो. मुझे इस बात की कोई शिकायत नहीं है बल्कि मैं बहुत खुश हूं, कि मेरे शब्द पब्लिक डोमेन में आ गए, अब वो सिर्फ़ मेरे नहीं है, दुनिया भर के हैं, जो जैसे चाहे अपना ले. बिलकुल ऐसे ही, रॉबर्ट लेवरी की कविता पब्लिक डोमेन में है, मैंने उसे अपने अंदाज़ और अपने तरीक़े से व्यक्त किया. अगर कभी किसी मंच पर मेरी इस कविता का ज़िक्र आया होगा,  तो मैंने फ़ौरन लेवरी का नाम लिया होगा. जिन लोगों के पास मेरी तीन साल पुरानी किताब खंगालने का समय है, उनको ये काम भी करना चाहिए, मेरे पब्लिक परफॉर्मन्स और लिटरेचर फ़ेस्टिवल्स वाले वो वीडियोज ढूंढ़ने चाहिए जहां मैंने ये कविता पढ़ी हो. देखिए वहां मैंने रॉबर्ट लेवरी का नाम लिया है या नहीं!    
        
सवालः. ऐसा कहा जा रहा है कि ‘तेरी मिट्टी‘  भी 2005 के एक पाकिस्तानी गीत की हू-ब-हू नक़ल है. इंटरनेट पर वो वीडियो वायरल है जिसमें एक पाकिस्तानी गायिका ये गीत गा रही हैं.

मनोज मुंतशिरः पहली बात वो गायिका पाकिस्तानी नहीं, हमारी अपनी हैं, गीता राबरी, बहुत गुणी लोक गायिका हैं. दूसरी बात जिस वीडियो की बात आप कर रही हैं वो 18 जून 2020 को अपलोड किया गया था और हमारा गीत 15 मार्च 2019 को रिलीज़ हुआ था. फिर भी किसी को कोई शक है, तो गीता जी यहीं हैं हमारे ही देश में, विख्यात कलाकार हैं, हर मीडिया हाउस के पास उनका नंबर होगा, कॉल कर के पूछ लीजिए. तेरी मिट्टी जैसे राष्ट्र-प्रेम को जाग्रत करने वाले गीत पर इस तरह की घिनौनी राजनीति उन करोड़ों भारतवासियों और लाखों सैनिकों की भावनाओं से खिलवाड़  है, जो इस गीत को माथे से लगाते हैं. आप मुझ से ख़फ़ा हैं, ग़ुस्सा मुझपे उतारिए, मैं हाज़िर हूं, लेकिन मेरे देशप्रेम को बे-इज़्ज़त मत कीजिए जो पवित्र है, पावन है और जिसे ‘तेरी मिट्टी‘ में ढाल के मैं धन्य हो गया.  

सवालः. लेकिन घिनौनी राजनीति आप ही के साथ क्यों हो रही है ?

मनोज मुंतशिरः क्योंकि मैंने ही अपने यूट्यूब चैनल पर वो वीडियो बनाया था जिसने एक बहुत बड़े समुदाय को रातो-रात मेरा दुश्मन बना दिया. ये लोग, जो ट्विटर पर मेरी एक बरसों पुरानी कविता को लेकर इतना तूफ़ान खड़ा कर रहे हैं, ये वही लोग हैं जिन्होंने मेरा वीडियो रिलीज होने के बाद मुझे सीधे निशाने पर ले लिया था और उसके बाद हर दिन, बल्कि हर घंटे मुझे पानी पी-पी के गालियां देते रहे.  देखिए जा के, बात कहां से शुरू हुई. पहला ट्वीट किसने किया था? वीडियो में कही मेरी बात बहुतों को वैसे ही चुभी जैसे हर सही बात चुभती है. मेरे कई करीबी दोस्तों ने मुझे आगाह किया कि अब मुझे टारगेट किया जाएगा. बिलकुल यही हो रहा है लेकिन मुझे टारगेट करने वालों के लिए एक बुरी खबर है, मैं रुकने और झुकने वाला नहीं हूं. मेरे साथ लाखों भारतवासी कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं. ये लोग जानते हैं कि मैं सच कह रहा हूं और सच को कभी समर्थन की कमी नहीं होती. मेरे गीत सुनने वाले और उन गीतों से इश्क़ करने वाले अच्छी तरह समझते हैं कि नक़ल करके एक-दो गीत लिखे जा सकते हैं, इतना बड़ा करियर खड़ा नहीं किया जा सकता. इंडस्ट्री का हाइयस्ट पेड राइटर नहीं बना जा सकता. मुझे अपने विरोधियों पर इस बात के लिए तरस आता है कि वो मेरे विरुद्ध कोई बड़ा स्कैंडल नहीं ढूंढ़ पाए. ढूंढ़ते भी तो कहां मिलता, मैंने एक बेदाग़ ज़िंदगी गुज़ारी है और सिर्फ़ अपनी मेहनत और कला के बलबूते पर गौरीगंज की पगडंडियों से सफलता के राजपथ तक पहुंचा हूं. मेरी कहानी हर उस नौजवान की कहानी है जिसमें सपने देखने और उनके लिए लड़ने की हिम्मत है. 

सवालः इस विवाद के बाद सोशल मीडिया पर आपके फैंस भी ‘डिफेंसिव’ हैं, उनके लिए क्या कहना चाहेंगे ?
मनोज मुंतशिरः
मेरे पास कोई फ़ैन नहीं है, सब मेरी फ़ैमिली हैं और जब मुझे समर्थन की ज़रूरत होगी, मेरे बिना कुछ कहे ये फ़ैमिली मेरे साथ खड़ी मिलेगी. मेरी या किसी भी राइटर की लेगसी एक दिन में नहीं बनती, बरसों की कलम तोड़ मेहनत और संघर्ष के बाद कामयाबी की धूप चमकती है. मेरी धूप आपके हवाले है, आप तय कीजिए कि मुझे  तेरी गलियां, तेरे संग यारा, कौन तुझे, फिर भी तुमको चाहूंगा, बाहुबली, तेरी मिट्टी और मेरी फ़ितरत है मस्ताना के लिए याद रखेंगे, या प्रायोजित और निराधार आरोपों के लिए. आपके लिए मेरे लिखे हुए 400 से ज़्यादा गीत, सैकड़ों कविताएं और राष्ट्र को समर्पित मेरे अनगिनत वीडियोज महत्वपूर्ण हैं, या वो 4 लाइनें जिनको पूरी बेशर्मी से तोड़-मरोड़ के मुझे राष्ट्रवादी होने की सज़ा दी जा रही है. 
एक आख़िरी बात, इस देश में जंगलराज नहीं है, हर विवाद के लिए कोर्ट और जूडिशीएरी बनी हुई है. अगर मैंने कुछ ग़लत किया है तो मेरे ख़िलाफ़ याचिका दायर करें, मुझे आदरणीय न्यायालय का हर फ़ैसला मंज़ूर है लेकिन सोशल मीडिया ट्रायल मंज़ूर नहीं है. मुझे कलंकित करने वाले एक बार ये तय कर लें कि उनको परेशानी मेरी कविता से है, या मेरे राष्ट्रवादी वीडियोज से, क्योंकि मैं वीडियोज़ बनाता रहूंगा, और कविता लिखता रहूगा, मुझे रोकना असंभव है.

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