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Saturday, March 19, 2022

फिल्म रिव्यू- बच्चन पांडे - The Lallantop

होली के मौके पर अक्षय कुमार की ‘बच्चन पांडे’ सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई है. फिल्म को देखने के बाद रियलाइज़ होता है कि इसकी रिलीज के लिए होली से अच्छा मौका हो नहीं सकता था. क्योंकि फिल्म में भरपूर खून-खराबा और मारकाट देखने को मिलता है. खैर, ‘बच्चन पांडे’ 2014 में आई तमिल फिल्म ‘जिगरठंडा’ की हिंदी रीमेक है. उस फिल्म में असॉल्ट सेतु नाम के गैंगस्टर का रोल करने वाले बॉबी सिम्हा को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का नेशनल अवॉर्ड मिला था. इस फिल्म में अक्षय कुमार ने वही वाला रोल किया है. अगर उन्हें भी इसके लिए नेशनल अवॉर्ड मिल जाए, तो किसी को ताज्जुब नहीं होना चाहिए. क्योंकि अक्षय ‘रुस्तम’-ए-हिंद हैं. अब पॉलिटिकल कमेंट्री से हटकर हम फिल्म पर आते हैं.

‘बच्चन पांडे’ की कहानी है मायरा नाम की लड़की की, जो एक फिल्म बनाना चाहती है. उसे एक गैंगस्टर के बारे में पता चलता है. मायरा उसकी कहानी पर फिल्म बनाने का फैसला लेती है. वो सब्जेक्ट पर रिसर्च वर्क के लिए अपने दोस्त विशु के साथ बघवा गांव जाती है. बघवा किस स्टेट में पड़ता फिल्म ये नहीं बताती है. किरदारों के एक्सेंट से अंदाज़ा लगता है कि ये यूपी-बिहार का कोई गांव है. यहां बच्चन पांडे नाम के एक गैंगस्टर का भौकाल है. बच्चन एक पत्रकार को सिर्फ इसलिए ज़िंदा जला देता है क्योंकि उसने बच्चन पांडे की कार्टून वाली फोटो छाप दी थी. वो UP 60 नंबर की गाड़ी में घूमता है, जो कि उत्तर प्रदेश के बलिया जिले का RTO कोड है.

फिल्म का नायक या यूं कहें कि खलनायक बच्चन पांडे और उसकी गैंग.
फिल्म का नायक या यूं कहें कि खलनायक बच्चन पांडे और उसकी गैंग.

खैर, बच्चन पांडे को पता चल जाता है कि मायरा और विशु उसके बारे में जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं. मायरा और विशु भाग पाते, इससे पहले वो पकड़े जाते हैं. दोनों बच्चन पांडे को बताते हैं कि वो उसकी कहानी पर फिल्म बनाना चाहते हैं. बच्चन को लगता है कि अगर उसकी कहानी पर फिल्म बनी, तो उसका नाम दूर-दूर तक फैल जाएगा. ज़्यादा लोगों उससे डरने लगेंगे. वो मान जाता है. मगर उसकी एक शर्त है. शर्त ये है कि वो अपनी फिल्म में खुद अपना रोल करेगा. आगे कहानी में क्या होता है इसके लिए आपको ‘बच्चन पांडे’ देखनी पड़ेगी या इसका सोर्स मटिरियल ‘जिगरठंडा’.

बच्चन पांडे का सामने गिड़गिड़ाते हुए अपनी जान की भीख मांगते मायरा और विशु.
बच्चन पांडे का सामने गिड़गिड़ाते हुए अपनी जान की भीख मांगते मायरा और विशु.

फिल्म में ‘बच्चन पांडे’ का टाइटल कैरेक्टर अक्षय कुमार ने प्ले किया है. अक्षय के साथ समस्या ये हो गई थी कि वो हर फिल्म में अक्षय कुमार ही लगते थे. वो दिखते भी कमोबेश सेम ही थे. ‘बच्चन पांडे’ से उन्होंने शायद इमेज मेकओवर की कोशिश की है. वो अलग दिख रहे हैं. स्टोरी की मांग के मुताबिक ओवर द टॉप परफॉर्म भी किया है. उनकी परफॉरमेंस में आप खोट नहीं निकाल सकते. कृति सैनन ने मायरा नाम की एस्पायरिंग फिल्ममेकर बनी हैं. कृति ने इस फिल्म में ऑलमोस्ट पैरलेल लीड रोल किया है. यानी उनके लिए करने को कुछ है. वो सिर्फ हीरो के साथ गाने में नाच नहीं रहीं. वो एक गैंगस्टर पर फिल्म बनाने की कोशिश कर रही हैं. कृति इस रोल में ठीक लगती है. मायरा के दोस्त विशु का रोल किया है अरशद वारसी ने. अरशद वारसी स्क्रीन पर कुछ नहीं भी करते हैं, तो फनी लगते हैं. मगर यहां वो कोशिश करके भी पब्लिक को हंसा नहीं पाते. जबकि फिल्म में उनके पास अच्छा-खासा स्क्रीनटाइम है.

अपनी बायोपिक में लीड रोल करता बच्चन पांडे. मगर उसके ऊपर बनी फिल्म का नाम है BP माने 'भोला पांडे'.
अपनी बायोपिक में लीड रोल करता बच्चन पांडे. मगर उसके ऊपर बनी फिल्म का नाम है BP माने ‘भोला पांडे’.

इन लोगों के अलावा अभिमन्यु सिंह, संजय मिश्रा और प्रतीक बब्बर भी इस फिल्म का हिस्सा हैं. मगर उनके हिस्से ज़्यादा कुछ करने को है नहीं. वो प्रॉपर हिंदी फिल्म साइडकिक हैं. ‘बच्चन पांडे’ में दो गेस्ट अपीयरेंसेज़ हैं. पहली जैकलीन फर्नांडिस, जो एक सिर्फ एक गाने में दिखाई देती हैं. उस गाने में एक कहानी है. मगर न आपको वो गाना याद रह पाता और न ही उसकी कहानी कन्विंस कर पाती है. पंकज त्रिपाठी भावेश भोपलो नाम के एक्टिंग टीचर के रोल में दिखाई हैं, जो बच्चन और उसकी गैंग को ट्रेनिंग देता है. वो कैरेक्टर कहानी में कुछ खास जोड़ तो नहीं पाता. मगर फिल्म का इकलौता जेन्यूइन फनी पार्ट साबित होता है. फिल्म में सीमा बिश्वास ने बच्चन पांडे की मां का रोल किया है, जो उससे बात नहीं करती. सीमा बिश्वास के लेवल की एक्टर के साथ जो इस फिल्म में किया गया है, वो बहुत खलता है. ये वो सीमा बिश्वास हैं, जिन्होंने ‘फूलन देवी’ का रोल किया था.

फिल्म के एक एक्शन सीन में अक्षय कुमार.
फिल्म के एक एक्शन सीन में अक्षय कुमार.

‘बच्चन पांडे’ एक मसाला एंटरटेनर है, जिसके पास कहने को एक मज़ेदार कहानी थी. मगर उस कहानी को नॉर्थ इंडियन बनाने के चक्कर में फिल्म का बेड़ा गर्क हो जाता है. एक तो हमारे यहां के फिल्ममेकर्स को ये समझने की ज़रूरत है कि किसी फिल्म को लोकल ऑडियंस की सेंसिब्लिटीज़ के हिसाब से ढालने का मतलब उन्हें डंब समझना नहीं है. आप पब्लिक को इतना बेवकूफ समझते हैं कि फिल्म में कुछ भी दिखाने लगते हैं. ‘बच्चन पांडे’ में एक सीन है, जब अक्षय का कैरैक्टर जैकलीन के पैंट में से सांप निकालकर फेंकता है. मुझे समझ नहीं आया कि इस सीन के माध्यम से डायरेक्टर क्या कहना चाहते हैं या वो पब्लिक को क्या फील करवाना चाहते हैं? इस फिल्म को फरहाद सामजी ने डायरेक्ट किया है. जिनके खाते में ‘हाउसफुल 4’ समेत कई ऐसी फिल्में हैं, जिन्हें ‘नो ब्रेनर कॉमेडी’ की कैटेगरी में रखा जाता है.

बच्चन पांडे की गर्लफ्रेंड सोफी के रोल में जैकलीन फर्नांडिस.
बच्चन पांडे की गर्लफ्रेंड सोफी के रोल में जैकलीन फर्नांडिस.

‘बच्चन पांडे’ को एक्शन कॉमेडी फिल्म कहकर प्रमोट किया गया था. इस फिल्म को लगता है कि लोगों को गोली मार देना, गला रेत देना या ज़िंदा जला देना एक्शन में काउंट होता है. संजय मिश्रा का कोई वाक्य पूरा न बोल पाना, फनी कैसे हो सकता है! अगर आप बच्चों और महिलाओं को टीवी पर पॉर्नोग्राफिक कॉन्टेंट दिखा देने को कॉमेडी मानते हैं, तो वाकई ‘बच्चन पांडे’ एक्शन कॉमेडी फिल्म है.

बफरिंग चाचा के रोल में संजय मिश्रा. उनके रुक-रुककर बोलने की कंडिशन को फनी लगना था. मगर वैसा हो नहीं पाता.
बफरिंग चाचा के रोल में संजय मिश्रा. उनके रुक-रुककर बोलने की कंडिशन को फनी लगना था. मगर वैसा हो नहीं पाता.

फिल्म की शुरुआत में बच्चन पांडे को एक ऐसे आदमी की तरह दिखाया जाता है, जिसका कोई ईमान-धर्म नहीं है. वो बस लोगों को इसलिए मार डालता है क्योंकि उसे ऐसा करने में मज़ा आता है. इतने सब के बाद भी बच्चन के दो साथी पेंडुलम और कांडी बताते हैं कि वो आदमी उनका हीरो है. क्यों? क्योंकि बच्चन पांडे को ‘प्यार का मूल्य’ पता है. प्यार का मूल्य से उनका मतलब है कि अगर आपका प्यार पूरा नहीं होता, तो आप लोगों की जान लेना शुरू कर दीजिए. शुरू से अंत तक फिल्म में ये बताने की कोशिश की जाती है कि ‘बच्चन पांडे’ बहुत बुरा और खूंखार आदमी है. मगर आखिरी 15 मिनट में उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है. इसके पीछे जो तर्क दिया जाता है, वही एक अच्छी और बुरी मसाला फिल्म का फर्क बताता है.

भावेश भोपलो नाम के एक्टिंग टीचर के रोल में पंकज त्रिपाठी.
भावेश भोपलो नाम के एक्टिंग टीचर के रोल में पंकज त्रिपाठी.

हालांकि ‘बच्चन पांडे’ में एक पॉज़िटिव चीज़ ये है कि फिल्म कोई गलत मैसेज नहीं देती. बुराई पर अच्छाई की जीत, इस फिल्म का बेसिक आइडिया है. हालांकि दशहरा वाले मैसेज के साथ फिल्म का होली पर रिलीज़ होना थोड़ा वीयर्ड है. जहां तक क्वॉलिटी ऑफ सिनेमा का सवाल है, वहां पर ये फिल्म निराश करती है. अगर आप एक साफ-सुथरी, हटके विषय पर बनी और वेल परफॉर्म्ड कॉमेडी फिल्म देखना चाहते हैं, तो ‘जिगरठंडा’ डिज़्नी+हॉटस्टार पर स्ट्रीमिंग के लिए उपलब्ध है. बच्चन पांडे को सिनेमाघरों में जाकर देखा जा सकता है.


वीडियो देखें: फिल्म रिव्यू- जलसा

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