बॉलीवुड इंडस्ट्री में नौशाद का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है. माना जाता है कि नौशाद वो पहले संगीतकार थे जिन्होंने बॉलीवुड इंडस्ट्री में क्लासिकल और वेस्टर्न म्यूजिक का मिश्रण कर संगीत को एक अलग ही दिशा दी. ये भी कहा जाता है कि मोहम्मद रफी को जब नौशाद का साथ मिला तो उनके करियर ने गति पकड़ ली. साथ ही नौशाद अपने अनुशासित रवैये के लिए भी जाने जाते थे. उनकी पुण्यतिथि के मौके पर बता रहे हैं संगीतकार के जीवन से जुड़ी कुछ अनसुनी बातें.
फुटपाथ पर सोते 40 रुपए महीना कमाते
नौशाद का जन्म 26 दिसंबर 1919 को लखनऊ में हुआ था. नौशाद का मन संगीत में हमेशा से रमा रहा. पहले वे हारमोनियम रिपेयर किया करते थे. संगीत की तालीम तो वे लेते ही थे. मगर उनके वालिद को ये कुछ रास नहीं आया. उन्होंने नौशाद पर दबाव बनाना शुरू किया और इसके बाद नौशाद घर से भागकर काम की तलाश में मुंबई आ गए. कुछ दिन वो कोलाबा में रुके फिर वे दादर शिफ्ट हो गए. वे 40 रुपए की सैलरी पाते और उस्ताद झंडे खान को एसिस्ट करते. साथ ही वे फुटपाथ पर सोते. काफी संघर्ष के बाद साल 1940 में उन्होंने पहली दफा फिल्म प्रेम नगर का म्यूजिक दिया.
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बैजू बावरा से मिली पहचान
नौशाद ने करियर की शुरुआत में माला, नई दुनिया, गीत, सन्यासी, दर्द, अनोखी अदा, मेला, अंदाज, दुलारी, दीरार और आन फिल्म के गाने दिए. उसके बाद साल 1952 वो साल रहा जब नौशाद देश के सबसे बड़े म्यूजिक डायरेक्टर बन गए. यहीं से मोहम्मद रफी की भी पहचान बननी शुरू हुई. फिल्म थी बैजू बावरा. फिल्म के सभी गाने सुपरहिट रहे.
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बैजू बावरा के बाद कभी नहीं थमा सिलसिला
बैजू बावरा के बाद तो नौशाद ने इतनी सारी सुपहहिट फिल्मों में म्यूजिक दिया कि उसका प्रभाव आज लगभग 7 दशक बाद भी महसूस किया जाता है. फिल्म दीवाना, मदर इंडिया, कोहिनूर, मुगल-ए-आजम, गंगा जमुना, मेरे महबूब, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम, आदमी पाकीजा, धर्म कांटा, लव ऑफ गॉड और गुड्डू जैसी फिल्में शामिल हैं. बता दें की गुड्डू फिल्म में लीड एक्टर शाहरुख खान थे. बतौर म्यूजिक डायरेक्टर उनकी आखिरी फिल्म साल 2005 में आई ताज महल थी. फिल्म में कबीर बेदी और मनीषा कोइराला थे. उस समय नौशाद की उम्र 85 साल की थी. 5 मई, 2006 को 86 साल की उम्र में नौशाद का निधन हो गया.
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